ब्लैकआउट क्या है? भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय के नियम और इसके पीछे की कहानी
जब भी हम युद्ध या आपातकाल जैसी स्थितियों की बात करते हैं, एक शब्द अक्सर सामने आता है — ब्लैकआउट (Blackout)। यह शब्द आज की पीढ़ी के लिए नया हो सकता है, लेकिन 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय, यह आम नागरिकों के जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया था। इस लेख में हम जानेंगे कि ब्लैकआउट क्या होता है, इसके पीछे का उद्देश्य क्या है, और भारत में इसे लागू करने के क्या नियम और नियमावली थी।
ब्लैकआउट क्या है?
ब्लैकआउट का मतलब होता है किसी क्षेत्र में पूरी तरह से सभी प्रकार की रोशनी को बंद करना। इसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन की वायु सेना को भ्रमित करना होता है, ताकि वे रात के समय हवाई हमले ना कर सकें या सही लक्ष्य तक न पहुंच सकें।
युद्ध के समय जब दुश्मन देश हवाई हमले करता है, तो वह रात के अंधेरे में शहर की रौशनी देखकर ही निशाना तय करता है। ऐसे में अगर पूरा शहर अंधेरे में हो, तो हवाई हमलावरों को सही जगह पहचानने में मुश्किल होती है। इसलिए ब्लैकआउट एक रक्षा रणनीति (defensive strategy) है।
भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय ब्लैकआउट कैसे किया जाता था?
1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय, खासकर बॉर्डर के नजदीकी शहरों जैसे अमृतसर, श्रीनगर, पठानकोट, जैसलमेर आदि में ब्लैकआउट नियमित रूप से किया जाता था।
ब्लैकआउट के दौरान क्या होता था:
सभी घरों, दुकानों और इमारतों की लाइटें बंद कर दी जाती थीं।
खिड़कियों पर मोटे काले पर्दे या कागज लगाए जाते थे, जिससे रोशनी बाहर न जाए।
स्ट्रीट लाइट्स और ट्रैफिक लाइट्स तक बंद कर दी जाती थीं।
पेट्रोल पंप, रेलवे स्टेशन और फैक्ट्रियों को भी लाइट बंद रखने के आदेश होते थे।
लोगों को निर्देश दिए जाते थे कि वह बिना जरूरत घर से बाहर न निकलें।
ब्लैकआउट के नियम और रेगुलेशन (Rules & Regulations):
सरकार और स्थानीय प्रशासन की ओर से विशेष नियम बनाए गए थे, जिनका पालन हर नागरिक को करना जरूरी था। उदाहरण के तौर पर:
1. सिविल डिफेंस ऑर्डर के तहत निर्देश दिए जाते थे कि कौन-कौन से इलाके ब्लैकआउट में आएंगे।
2. जो व्यक्ति या संस्था ब्लैकआउट नियमों का पालन नहीं करता था, उस पर जुर्माना या सजा तक हो सकती थी।
3. वार्डन नियुक्त किए जाते थे, जो यह सुनिश्चित करते थे कि हर घर और संस्था ब्लैकआउट के नियमों का पालन कर रही है।
4. सड़कों पर पुलिस और सेना की गश्त बढ़ा दी जाती थी।
आधुनिक संदर्भ में ब्लैकआउट
आज के समय में भारत में ऐसे युद्धकालीन ब्लैकआउट की जरूरत नहीं पड़ी है, लेकिन कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा कारणों से अभी भी सीमित ब्लैकआउट किए जा सकते हैं। साथ ही, युद्ध अभ्यास के दौरान सेना कई बार "सिम्युलेटेड ब्लैकआउट" करती है।
निष्कर्ष
ब्लैकआउट सिर्फ एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की एकजुटता और सतर्कता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार आम नागरिक भी युद्ध जैसी गंभीर परिस्थितियों में अपने देश की रक्षा में योगदान दे सकते हैं। आज भले ही हम तकनीकी रूप से उन्नत हो गए हैं, लेकिन इतिहास के ये सबक हमें सतर्क रहने की प्रेरणा देते हैं।
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